दयनीय दशा में मिरा-भाईंदर मनपा की शिक्षा प्रणाली!
◾️20 साल बाद भी 10वीं कक्षा की पढाई का नहीं कर सके इंतजाम!
◾️जिम्मेदार कौन? सांसद, बिधायक, नगरसेवक या भ्रष्ट मनपा प्रशासनतंत्र ?
नगरपरिषद से महानगरपालिका में तब्दील हुए मिरा-भाईंदर शहर की प्रशासनिक व्यवस्था को 20 साल हो चुके हैं। सालाना बजट 2 हजार करोड़ रुपये तक पहूंच गया है। शहर के सर्वसामान्य लोगों के बच्चों हेतु स्कूल बनाने के लिए आरक्षित सरकारी जमीनों पर बिधायकों और नगरसेवकों, शिक्षा माफियाओं सहित शहर के अनेक नेताओं की आलीशान स्कूलें बन चुकी है। शिक्षा माफियाओं द्वारा शहर के बच्चों को ऊंची फीस पर 10वीं की पढाई करवाई जा रही है, परंतु आज भी मनपा द्वारा संचालित स्कूलों में सिर्फ 7वीं कक्षा तक की ही पढाई होती है। इसका क्या यह मतलब निकाला जाए कि, मिरा-भाईंदर मनपा प्रशासन यह सोचता है कि, उसके द्वारा संचालित स्कूलों में 7वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बच्चे की शिक्षा पूरी हो जाती है! गरीबों के बच्चों को उससे आगे की पढाई करने की आवश्यकता नहीं है? शहर के मनपा प्रशासन की बडी विचित्र विडंबना यह है कि, यहां लगभग हर साल नया आयुक्त आता है। परंतु आजतक किसी ने भी इस विषय पर ना तो संज्ञान लिया और ना ही सकारात्मक प्रयास किया! और तो और ठाणे जिला कलेक्टर की ओर से भी अब तक निराशा ही मिली। मनपा बजट में शिक्षण के लिए विशेष प्रावधान है, मोटी रकम आवंटित भी होती है। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार की ओर से भी फंड आता है। केंद्र सरकार की ओर से भी सर्वशिक्षा अभियान के तहत फंड का प्रावधान है। इसके बावजूद स्कूलों की दशा दयनीय स्थिति में दिखाई देती है। शहर के प्रबुद्धजनों द्वारा समय-समय पर सवाल खड़े किये जाते रहे हैं और अब भी सवाल किया जा रहा है कि, यह पैसा आखिरकार जाता कहां है? लेकिन आज तक इस सवाल का जबाब किसी को नहीं मिला है। दरअसल इसका जबाब कोई देगा भी क्यों? क्योंकि उनकी दुकानदारी बंद हो जाऐगी। मनपा के अधिकारियों की हराम की कमाई बंद हो जाऐगी तथा शिक्षा माफिया सहित स्कूलें चलाने वाले नेताओं की स्कूल रुपी दुकानों में नुकसान हो जाऐगा। ऐसी चर्चा शहर के बुद्धिजीवी लोगों में चल रही है। सामान्य शहरवासियों का कहना है कि, यहां के तमाम नेता चुनावों से पहले तो बडी-बडी बातें करते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद वे ही भ्रष्टाचार करने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।
सोचनीय यह भी है कि, शिक्षा माफियाओं एवं नेताओं की स्कूलों और मनपा द्वारा संचालित स्कूलों की फीस और स्टाफ की सेलरी में भी काफी असमानता है। एक ओर जहां मोटी पगार पानेवाले सरकारी स्कूलों के स्टाफ टाईमपास करते नजर आते हैं, वहीं दूसरी ओर मामूली तनख्वाह पर प्राईवेट स्कूलों का स्टाफ कोल्हू के बैल की तरह काम का बोझ ढोता नजर आता है। इस व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता है। मिरा-भाईंदर शहर की सरकारी स्कूलों में भी 10वीं तक की कक्षा शीघ्रातिशीघ्र शुरु होनी चाहिये। समाजविदों की ओर से ऐसी मांग अब जोरों से उठने लगी है।
प्रस्तुति : निर्भय
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